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कब हुई किन्नर अखाड़े की स्थापना, जानिए किसकी पूजा करते हैं किन्नर

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Mahakumbh 2025: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में सभी अखाड़ों का डेरा जम चुका है। सनातन धर्म के 13 प्रमुख अखाड़े इस समय महाकुंभ में हैं।  महाकुंभ में किन्नर अखाड़ा भी है जो कि सबसे नया अखाड़ा है। प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में सभी अखाड़ों के साथ किन्नर अखाड़ा भी अपनी अनूठी पहचान के कारण सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हाल ही में अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े ने महामंडलेश्वर की पदवी दी है। इसके बाद लोगों में इस अखाड़े को लेकर जिज्ञासा बढ़ी है। कैसे हुई किन्नर अखाड़े की स्थापना और कौन हैं इनके इष्ट देव ये प्रश्न लोगों के मन में हैं। आइये वेबदुनिया हिंदी पर आज इस विषय पर आपको विस्तार से जानकारी देते हैं।
 
किन्नर अखाड़े की स्थापना: किन्नर अखाड़े की स्थापना 2016 के सिंहस्थ कुंभ से पहले अक्टूबर 2015 में हुई थी। अखाड़े का  उद्देश्य किन्नर समुदाय को एक मजबूत धार्मिक पहचान प्रदान करना और उन्हें मुख्य धारा में लाना था। हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपनाने वाले दर्जनों किन्नरों को भी किन्नर अखाड़े ने फिर से अपने साथ जोड़ा है। किन्नर अखाड़े ने अब तक कई महामंडलेश्वर और मंडलेश्वर भी बनाए हैं।

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किन्नर अखाड़ा और जूना अखाड़ा: 2019 के कुंभ से पहले किन्नर अखाड़े ने जूना अखाड़े के साथ एक समझौता किया था, जिसके तहत दोनों अखाड़े मिलकर काम करते हैं। जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरि के साथ किन्नर अखाड़ा भी इस बार महाकुंभ में शामिल हुआ है।

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कौन हैं किन्नरों के ईष्ट देव : तमिलनाडु में अरावन देवता की पूजा एक सदियों पुरानी परंपरा है। उन्हें अक्सर इरावन के नाम से भी जाना जाता है और उन्हें किन्नरों का देवता माना जाता है। दक्षिण भारत में किन्नरों को अरावनी के नाम से पुकारा जाता है। अरावन देवता महाभारत के एक प्रमुख पात्र थे और युद्ध के दौरान उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
 
महाभारत से जुड़ा है इसका कारण: महाभारत के अनुसार, एक बार अर्जुन ने द्रोपदी से शादी की एक शर्त का उल्लंघन कर दिया था जिसके कारण उन्हें इंद्रप्रस्थ से एक साल के लिए वनवास जाना पड़ा। वनवास के दौरान, अर्जुन उत्तर पूर्व भारत में पहुंचे जहां उनकी मुलाकात एक विधवा नाग राजकुमारी उलूपी से हुई। दोनों एक-दूसरे के प्यार में पड़ गए और विवाह कर लिया। इस विवाह से उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम अरावन रखा गया।
 
अरावन का जन्म और युद्ध : अरावन का जन्म नागलोक में हुआ था और वह अपनी माँ के साथ ही रहता था। जब वह युवा हुआ तो वह अपने पिता अर्जुन से मिलने के लिए गया। उस समय कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध चल रहा था और अर्जुन ने अरावन को युद्ध में भाग लेने के लिए भेजा।
 
अरावन का बलिदान: महाभारत युद्ध के दौरान, पांडवों को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए मां काली को एक मानव बलि चढ़ानी पड़ी। जब कोई भी राजकुमार स्वेच्छा से बलिदान के लिए तैयार नहीं हुआ तो अरावन ने खुद को बलिदान करने का निर्णय लिया। लेकिन उसने एक शर्त रखी कि वह अविवाहित नहीं मरेगा। यह शर्त एक बड़ी समस्या बन गई क्योंकि कोई भी राजा अपनी बेटी की शादी अरावन से नहीं करना चाहता था, क्योंकि उसे पता था कि अरावन अगले दिन मर जाएगा। इस मुश्किल स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप धारण कर अरावन से विवाह किया। अगले दिन, अरावन ने अपना शीश काटकर मां काली को अर्पित कर दिया।
 
किन्नर करते हैं अरावन से शादी
भगवान श्रीकृष्ण ने पुरुष होते हुए स्त्री रूप में अरावन से विवाह किया था। इसीलिए किन्नर, जो कि स्त्री रूप में पुरुष माने जाते हैं, भी अरावन को अपना आराध्य देव मानते हैं और साल में एक बार उनसे विवाह करते हैं। यह परंपरा महाभारत काल की एक अनोखी घटना से जुड़ी हुई है। यह विवाह साल में एक बार किया जाता है और विवाह के अगले दिन ही अरावन देव की मृत्यु हो जाने के साथ ही वैवाहिक जीवन भी खत्म हो जाता है। तब किन्नर अपना मंगलसूत्र तोड़ देते हैं, श्रंगार उतार देते हैं और सफ़ेद साड़ी पहनकर रोते हैं।



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